प्रवेशद्वार:बौद्ध धर्म


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बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है । इसके प्रस्थापक महात्मा बुद्ध शाक्यमुनि (गौतम बुद्ध) थे । वे छठवीं से पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व तक जीवित थे । उनके गुज़रने के अगले पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ैला, और अगले दो हज़ार सालों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फ़ैल गया । आज, बौद्ध धर्म में तीन मुख्य सम्प्रदाय हैं: थेरवाद, महायान और वज्रयान । बौद्ध धर्म को पैंतीस करोड़ से अधिक लोग मानते हैं और यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है ।

"बुद्ध" वे कहलाते हैं, जिन्होने सालों के ध्यान के बाद यथार्थता का सत्य भाव पहचाना हो । इस पहचान को बोधि नाम दिया गया है । जो भी "अज्ञानता की नींद" से जागते हैं, वे "बुद्ध" कहलाते हैं । कहा जाता है कि बुद्ध शाक्यमुनि केवल एक बुद्ध हैं - उनके पहले बहुत सारे थे और भविष्य में और होंगे । उनका कहना था कि कोई भी बुद्ध बन सकता है अगर वह उनके "धर्म" के अनुसार एक धार्मिक जीवन जीए और अपनी बुद्धि को शुद्ध करे । बौद्ध धर्म का अन्तिम लक्ष्य है इस दुःख भरी स्थिति का अंत । "मैं केवल एक ही पदार्थ सिखाता हूँ - दुःख और दुःख निरोध" (बुद्ध) । बौद्ध धर्म के अनुयायी आर्य अष्टांग मार्ग के अनुसार जीकर अज्ञानता और दुःख से मुक्ति और निर्वाण पाने की कोशिश करते हैं ।

edit  चयनित बौद्ध
edit  चयनित बुद्ध/बोधिसत्व/देव
edit  चयनित कलाकृति
A Chenrezig Thangka of Avalokitesvara
A Chenrezig Thangka of Avalokitesvara
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edit  कार्य, जो आप कर सकते हैं।
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edit  चयनित लेख

अजंता गुफाएं महाराष्ट्र, भारत में स्थित पाषाण कट स्थापत्य गुफाएं हैं। यह स्थल द्वितीय शताब्दी ई.पू. के हैं। यहां बौद्ध धर्म से सम्बंधित चित्रण एवं शिल्पकारी के उत्कृष्ट नमूने मिलते हैं। इनके साथ ही सजीव चित्रण भी मिलते हैं। यह गुफाएं अजंता नामक गांवे के सन्निकट ही स्थित हैं, जो कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में हैं। (निर्देशांक: 20° 30’ उ० 75° 40’ पू०) अजंता गुफाएं सन 1983 से युनेस्को की विश्व धरोहर स्थल घोषित है। गुफाएं एक घने जंगल से घिरी, अश्व नाल आकार घाटी में अजंता गांव से 3½ कि॰मी॰ दूर बनीं हैं। यह गांव महाराष्ट्र के [[औरंगाबाद शहर से 106 कि॰मी॰ दूर बसा है। इसका निकटतम कस्बा है जलगाँव, जो 60 कि॰मी॰ दूर है, भुसावल 70 कि॰मी॰ दूर है।अजंता का मठ जैसा समूह है, जिसमें कई विहार (मठ आवासीय) एवं चैत्य गृह हैं (स्तूप स्मारक हॉल), जो कि दो चरणों में बने हैं। प्रथम चरण को गलती से हिनायन चरण कहा गया है| दूसरे चरण की खुदाइयां लगभग तीन शताब्दियों की स्थिरता के बाद खोजी गयीं। इस चरण को भी गलत रूप में महायन चरण ९बौद्ध धर्म का दूसरा बड़ा धड़ा, जो कि कमतर कट्टर है, एवं बुद्ध को सीधे गाय आदि रुप में चित्रों या शिल्पों में दर्शित करने की अनुमति देता है।) कई लोग इस चरण को वाकाटक चरण कहते हैं।

edit  चयनित चित्र
चक्रसंवर वज्रवारही

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