प्रवेशद्वार:विलुप्तीकरण
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वे जीव जो विभिन्न कारणों से धीरे-धीरे लुप्त हो रहे हैं और जिनको संरक्षण की आवश्यकता है उन्हें विलुप्त प्राय जीव कहते हैं। यदि इनका संरक्षण नहीं किया गया तो वे लुप्त हो जायेंगे। भारत के कुछ विलुप्त प्राय जन्तु जंगली गदहा, एक सींग वाला गैंडा, तेंदुआ, नीलगिरि के लंगूर, कस्तूरी मृग,, सफेद गैंडा तथा अजगर हैं। edit
[[चित्र:|100px|right|डोडो का १६२६ में निर्मित एक चित्र]]
डोडो मॉरीशस का एक स्थानीय उड़ान रहित पक्षी था। यह पक्षी कबूतर और फाख्ता के परिवार से संबंधित था। डोडो मुर्गे के आकार का लगभग एक मीटर उँचा और २० किलोग्राम वजन का होता था। इसके कई दुम होती थीं। यह अपना घोंसला ज़मीन पर बनाया करता था तथा इसकी खुराक मे स्थानीय फल शामिल थे। यह एक भारी-भरकम, गोलमटोल पक्षी था व इसकी टांगें छोटी व कमजोर थीं, जो उसका वजन संभाल नहीं पाती थीं। इसके पंख भी बहुत ही छोटे थे, जो डोडो के उड़ने के लिए पर्याप्त नहीं थे। इस कारण ये ना तो तेज दौड़ सकता था, ना उड़ ही सकता था। अपनी रक्षा क्षमता भुलाने के कारण ये इतने असहाय सिद्ध हुए, कि चूहे तक इनके अंडे व चूजों को खा जाते थे। वैज्ञानिकों ने डोडो की हड्डियों को दोबारा से जोड़ कर इसे आकार देने का प्रयास किया है, और अब इस प्रारूप को मॉरीशस इंस्टीट्यूट में देखा जा सकता है। १६४० तक डोडो पूरी तरह से विलुप्त हो गए। इसे अंतिम बार लंदन में १६३८ में जीवित देखा गया था। यह मॉरीशस के राष्ट्रीय चिह्न में भी दिखता है। विस्तार में...
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सकेती जीवाश्म उद्यान हिमाचल प्रदेश में काला अम्ब ग्राम से ५ कि॰मी॰ स्थित एक जीवाश्म उद्यान है। इसे शिवालिक जीवाश्म उद्यान भी कहा जाता है। यह चंडीगढ़ से ८५ कि॰मी॰ दूर, अंबाला से ६५ कि.मी; नहान से २२ कि.मी तथा देहरादून से ११० कि॰मी॰ दूर स्थित है। यहां एक छोटा जीवाश्म संग्रहालय है, जिसमें लगभग पच्चीस से दस लाख वर्ष पूर्व के, भिन्न जीव-समूहों, जैसे स्तनधारी, सरीसृप, मत्स्य, एवं खासकर शिवालिक की पहाड़ियों के आसपास रहने वाले जीवों के अवशेष (जैसे खोपड़ी, दांत, जबड़े, आदि) के जीवाश्म प्रदर्शन मंजूषा में संग्रहीत हैं। इस उद्यान में उत्तम स्तर के फाइबर-ग्लास निर्मित प्रागैतिहासिक जीवों के छः प्रतिरूप प्रदर्शित हैं, जो शिवालिक क्षेत्र में आवास करते थे, जिनमें १८ फीट के हाथी-दांत वाला हाथी, ३ मीटर का महा-कच्छप आदि प्रमुख हैं।विस्तार में...
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